Saturday, May 1, 2010

**मन की शांति के उपाय **

तीसरा उपाय

ईर्ष्‍या मत करो

हम सभी जानते है कि किस तरह ईर्ष्‍या  हमारे मन की शांति को भंग करती है । आप जानते है कि आपके ऑफिस में आपको दिया गया काम आपके दूसरे आफिस के साथियों से ज्‍यादा कठिन है आपके साथी का प्रमोशन हो जाता है और आपका नहीं होता आपने अपना व्‍यवसाय बरसों पहले चालू किया और आपके पड़ोसी ने साल भर पहले अपना व्‍यवसाय शुरु किया और उसका व्‍यवसाय चल निकला आपका नहीं

आपको अपने जीवन में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेंगे जिनसे कि आपके मन में ईर्ष्‍या उत्‍पन्‍न होती है ।

एक बात का ध्‍यान रखें हर एक मनुष्‍य का जीवन उसी तरह पलटता है जैसा कि उसके भाग्‍य में भगवान ने लिखा होता है दूसरे शब्‍दों में प्रत्‍येक मनुष्‍य को केवल वही हासिल होता है जो कि उसके भाग्‍य में हासिल होना लिखा होता है और जीवन की यही वास्‍तविकता है ।

अगर आपके भाग्‍य में धनवान होना लिखा है तो आपको धनवान बनने से कोई रोक नहीं सकता अगर ऐसा होना नहीं लिखा है तो कोई भी आपको धनवान नहीं बना सकता है ।

दूसरों पर इल्‍जाम लगाकर अथवा ईर्ष्‍या करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते और ना ही अपने भाग्‍य को बदल सकते हैं ।

 ईर्ष्‍या करके आप कुछ हासिल करने के बजाय केवल अपने मन की शांति को ही खो सकते है ।


अनिल हर्ष

2 comments:

  1. पहली बार आना हुआ मेरा आपके ब्लॉग पर.
    बज़ के रास्तों से हो कर यहाँ पहुंची.
    बहुत प्यारा लिखा है.लोग पढ़ें? नही जी जाये ये सब ,बस फिर किसी की जरूरत नही रहेगी ना पूजा पाठ,ना भजन कीर्तन.
    हम सब करते है बस यही नही करते जो आपने लिखा.
    बाबा! आपका नाम तो 'अनिलानंद महाराज' होना था.
    कौन कहता है सन्यासियों,साधुओं सा जीवन जीने के लिए घर,परिवार त्यागना जरूरी है ?
    गृहस्थ जीवन स्वयम एक तपस्या है,सन्यासी जीवन भी सरल नही आप तो दोनों को जी रहे हैं बेटा!
    आपको प्रणाम नन्हे से गुरुदेव!
    और किस फोतो का ज़िक्र बज़ पर चल रहा है?
    मुझे बताएंगे?देखना चाहती हूँ.
    शुभकामनाएं

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  2. बहुत उत्तम विचार हैं आपके...प्रभावशाली लेखन है...बहुत अच्छा लगा यहाँ आ कर...
    नीरज

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