Thursday, October 14, 2010

Are you over weight ? Now Calculate body mass of near and dears to whom you love.

Most of us are conscious about health and they eat good and healthy food. Eating good and healthier food is not bad but every thing is dangerous  when it exceeds the limit.

Our intake is counted in terms of calories. So the total intake (food) should be less than or equal total calories burnt (the energy required by body for a day) If our intake is more than the requirement of body the extra calories will be stored as a reserve which is to be used in emergency.

The reserve quota should be minimum and for a limited period. In our body system reserve quota is not specified so our body transfer all the calories to reserve  without considering the existing reserves available which  resulted in to increase in body weight.

We unnecessarily carry weight of reserve and make our body uncomfertable. Are you one of them who carry extra reserve. You can calculate your body mass by clicking on the link provided below and decide whether you carry extra reserve ?



Click on the link provided below to calculate your body mass:

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Know about the food we used to eat

All of us know that which food is good for our health and what should we eat. But there is a concept of calories which we should know.

 Each food contains certain level of calories / energy and other contains such as vitamins and minerals etc. As per latest research each person should intake / consume  a certain level of calories which differs from man to man. A growing child needs more calories /energy, vitamins and minerals while a normal person require less calories then a sports man or hard worker labor.

However in any case total intake of calories should not be more than the body requirement. Intake of calories is more than the requirement develops various disabilities and increase the body weight / mass. If a sugar patients intake more calories, sugar level is increased which causes damages to the various parts of the body.

You can find the value of calories in various foods by clicking on the link provided below.




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Anil Kuma Harsh

Tuesday, June 1, 2010

**संकल्‍प शक्ति अंतिम भाग **

संकल्‍प शक्ति अंतिम भाग

एक संत के पास एक भक्‍त गया उसने कहा मैं आपसे शान्ति का मार्ग पूछने आया हॅू संत ने तुरन्‍त पूछा -- अशान्ति का मार्ग पूछने कहां गये थे, वह तो अपने आप प्राप्‍त हो गया --- भक्‍त ने बताया । तब शान्ति का मार्ग भी अपने आप क्‍यों नहीं खोज लेते सन्‍त ने प्रतिप्रश्‍न किया । व्रति परिष्‍कार का उपाय स्‍वयं से ही खोजना है , इस निष्‍ठा के बाद ही आगे का द्धार खुलता है ।

क्‍या है व़्रति

व़्रतिया मुख्‍यता दो प्रकार की होती है राग और द्धेष । कभी राग की व़्रति ऊभर आती है और कभी द्धेष की जो निषेधात्‍मक भाव में अधिक जीता है वह द्धेष प्रधान होता है जो विधायक भाव में अधिक जीता है वह राग प्रधान होता है या समभाव प्रधान । वर्तमान मनोविज्ञान भी मुख्‍य दो व़्रतियां मानता है --- जीवन मूलक व़्रति और म़त्‍युमूलक व़्रति । हास्‍य राग का परिवार है और ध़णा द्धेष का । यूं तो परम विशुद्ध चेतना के साथ किसी व़़्रति का सम्‍पर्क बताना ही मिथ्‍या द़ष्टिकोण है परन्‍तु जब राग और द्धेष क्रोध और मोह उसके साथ जुड़ते है तब चेतना अशुद्ध हो जाती है । जब हम किसी पानी को अशुद्ध बना सकते है तो शुद्ध बनाने का दायित्‍व भी हमारे पर आता है ।

सूत्र

1- मुझे बदलना है, संकल्‍प परिवर्तन का पहला सूत्र है । अधिकांश लोग इस संकल्‍प के पूर्व शे ष सब संकल्‍प दोहराते चले जाते है । नाव वहीं खड़ी है जहां कल रात खड़ी थी । यात्रा हो रही है , किन्‍तु बिना उजाले के। मंजिल के लिए सही संकेत और उजाला चाहिये तभी सम्‍यग़ द़ष्टिकोण में परिवर्तन हो सकता है ।

2- व़्रति चेतना के केन्‍द्र के आस पास धूमती है । उसे सारा पोषण भीतर से मिलता है जब तक पोषण खुराक मिलती रहेगी तब तक कोई भी व़्रति क्‍यों मरेगी, उसे दुर्बल करने का मार्ग है ध्‍यान । ध्‍यान की अवस्‍था में नया बंध नहीं होता । बंध होता है चंचलता में । ध्‍यान से चंचलता घटती है यद्यपि एक दिन में कोई व्‍यक्ति ध्‍यान करके क्रोध को घटा नहीं सकता परंतु मार्ग यही है । लाखेां साधकों ने इस प्रयोग से सत्‍य को पाया है । जागरण से व्‍यक्ति बदलता है दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा कि कोई जागा हो और न बदला हो । अपने भीतर गया हो और नहीं बदला हो । अपनी व़्रतियों की और झांका हो और परिष्‍कार न हुआ हो ।

3- हमारा पूरा शरीर पावर हाऊस है । जब हम कोई ठेास संकल्‍प करते है तब हमारे मन की ऊर्जा विद्युत चुम्‍बकीय क्षेत्र को प्रभावित करती है । वह हमारे शरीर व्‍यापि स्‍नायु तारों से जुड़कर सम्‍प्रेषण, भावोतेजन, परिवर्तन जैसी सभी क्रियाओं के करने में सक्षम हो जाती है । अवचेतन में हम जैसा भेजते हैं वही साकार होता है, यह सच्‍चाई है । जिसने संकल्‍प किया है वह अवश्‍य बदला है । संकल्‍प करे और कोई न बदले यह असंभव है । संकल्‍प की भाषा अभाषा होती है , केवल ऊर्जामय होती है जिससे जड़ और चेतन दोनों को प्रभावित किया जा सकता है । इस शक्ति से शरीर का वर्ण, मुंह का स्‍वाद, बुद्धि का स्‍वाद, सामने की आदत तूफान को थामना आदि अनेक असंभव कार्य जो इन्द्रिय स्‍तर पर नहीं हो सकते, उन्‍हें संकल्‍प अतीन्द्रिय स्‍तर पर सम्‍पादित करता है ।

पानी बढ़ा तूफान आया और सब भागने लगे भागते हुए सभी लोगों ने चिल्‍ला कर कहा -- बाबा उठो, तुम भी भागने की तैयारी करो अन्‍यथा डूब जाओगे । सन्‍यासी ने धीरे धीरे बोलते हुए पूछा -- जरा बताओ कहां है तूफान भीड़ में से एक आवाज आयी --- वह रहा सामने तूफान, जो हमारी और बढ़ता आ रहा है । अच्‍छा , सन्‍यासी ने कहकर सामने देखा और तीन बार एक ही शब्‍द को दोहराया -- शांन्‍त शान्‍त शान्‍त तूफान आगे बढ़ने से एक साथ रुक गया ।

मन एक चंचल हवा है जिसे संकल्‍प के सहारे एक साथ रोका जा सकता है । इस हवा के रुकते ही तल में व्रत्तियों के सागर में जो बाहर से प्रभाव जाता है वह घटने लगता है । एक दिन भीतर का दबाव भी कम हो हाता है । ये हमारी सारी व़्रत्तियां मन के वेग से बल पकड़ती है । इन्‍हें निर्बल करने के लिए मन का संतुलन जरुरी है ।

मन के संतुलन की विधि

आराम से किसी आसन में बैठ जाये । शरीर के किसी भाग में भारीपन न रहे । शरीर की सभी क्रियाओं के प्रति एक साथ जागरुक हो जायें । सोचें नहीं, अनुभव करते जायें । इस शांत अवस्‍था में ध्‍वनियां सुनाई देती है । उनमें से एक ध्‍वनि जागरुकता से सुनते जायें, उसके स्‍थूल और सूक्ष्‍म दोनों प्रकार के ध्‍वनि प्रकम्‍पनों का अनुभव करें ।

आत्‍म चिंतन

कोई आत्‍म चिंतन करे और न बदले यह हो नहीं सकता ईमानदारी से कोई यह चिंतन करे कि क्रोध, ध्रणा कपट जैसे पाप करके में अपना अहित क्‍यों करुं तो निश्चित रुप से वह बदलेगा ।

मन की शुद्धि

अहंकार एक व़्रति है यह सबसे खतरनाक व्रति है जिसे मिटाने के लिए कोई विशेष प्रयोग चाहिए । हम केवल विषव़क्ष के पान फूलों को काट कर संतोष कर लेते है जबकि जड़ को पकड़ना चाहिए । निमित पर टिकी श्रद्धा चैतन्‍य के प्रति मूर्च्‍छा पैदा करती है मूर्च्छित व्‍यक्ति क्‍या क्‍या नहीं करता, जो अपना है उसे पराया मानता है और जो पराया है उसे अपना । यह भ्रम टूटता है स्‍वयं के मन को समझने से । धन मिला अंह बढ़ गया समाज में प्रतिष्‍ठा मिल गयी । क्‍या अहं उत्‍पन्‍न होने का कारण धन था.... धन मात्र निमित्‍त था जिसके सहारे हमारे भीतर बैठा राग अभिव्‍यक्‍त हो गया ।

संशोधन निमितों का नहीं मन का करना है । भ्रम भी एक व़्रति है जिसके कारण व्‍यक्ति स्‍वयं से दूर रहता है । इस व़्रति का परि‍ष्‍कार अस्तित्‍व बोध से हो सकता है । जिसके पास अधिक संग्रह होगा उसे अधिक भय होगा क्‍योंकि सुरक्षा के उपाय बहुत जटिल होते हैं ।

मनुष्‍य की एक यह भी मनोव़ति होती है कि वह स्‍वयं को छुपाना चाहता है वह नहीं छुपाये तो असलियत प्रगट होती है जहां उसका अहं खडा नहीं रह सकता । अहं को जिंदा रखने के लिये व्‍यक्ति को कुटिल बनना पड़ता है संकल्‍प शक्ति से मन की कुटिलता को बदला जा सकता है । परिष्‍कार एवं परिवर्तन के लिये दीर्ध मौन, द़ष्टि परिवर्तन एवं कायोत्‍सर्ग ही एकमात्र उपाय है ।


अनिल हर्ष

Thursday, May 27, 2010

**संकल्‍प शक्ति**

*****संकल्‍प शक्ति*****


विश्‍व में जितनी भी शक्तियां है उनमें सबसे बड़ी व्‍यापक शक्ति है संकल्‍प की । संकल्‍प का अर्थ है मस्तिष्‍क और ह्रदय दोनों की सम्मिलित क्रिया । पशु विचार करते समय स्‍वयं को न अतीत से जोड़ता है और न भविष्‍य से इसलिये उसे न पश्‍चाताप होता है और न कामनाएं कल्‍पनाएं उसे न असंतोष होता है और न संतोष मनुष्‍य स्‍वयं को बदलना चाहता है इसलिये उसे कोई उपाय चाहिये उस उपाय का नाम है संकल्‍प शक्ति ।

आज तक मनुष्‍य ने जितना विकास किया है यह इसी बल के सहारे किया है मानव से महा मानव इन्द्रिय जगत से अतिन्द्रिय जगत की यात्रा का माध्‍यम यही है इस शक्ति से केवल जड़ को चेतन नहीं बनाया जा सकता शेष सभी कार्य सम्‍पादित किये जा सकते हैं । संकल्‍प विचार की सधनता का नाम है विचार कर तरलता संकल्‍प से जम जाती है संकल्‍प शक्ति एक प्रकार की शासक शक्ति है जो जड़ और चेतन दोनों पर शासन करती है निकट और दूर दोनों आकाश को बांधती है शत्रु और मित्र दोनों को रुपातीत करती है ।

संकल्‍प इन्द्रिय और अतीन्द्रिय दोनों से संबंध रखने वाली शक्ति है एक संकल्‍प मन को चलाता है और एक संकल्‍प मन को थामता है । रुस के एक वैज्ञानिक ने लिखा है हमारे भीतर साईकोइलेक्‍ट्रोनिक्‍स अर्थात ऊर्जा का जगत है इस ऊर्जा शक्ति को घटाया बढ़ाया जा सकता है हम बहुत बार एैसी कहानियां सुनते हैं कि कागज का एक टुकड़ा टिकट बन गया कांटे फूल बन गये बर्फ से छाले पड़ गये और आग से शरिर ठंडा यह सब जादू नहीं हमारी संकल्‍प शक्ति का प्रभाव है ।

संकल्‍प और एकाग्रता

संकल्‍प एक विचार है । जब तक चित्‍त एकाग्र नहीं होता तब तक कोई संकल्‍प साकार नहीं होता । जिधर संकल्‍प जाता है उधर प्राण चेतना स्‍वत: सक्रिय हो जाती है । संकल्‍प के घर्षण से प्राण में एक प्रकार का विद्युतीय प्रवाह उत्‍पन्‍न होता है जो लक्ष्‍य बिंदु पर केन्द्रित होकर व्‍यक्ति की मनोकामना पूर्ण करता है । मंत्र विद्या पर अनुसंधान करने वाले वैज्ञानिकों का कहना है , कम आव्रति वाली तरंगों से महान ऊर्जा वाली तरंगे शांत होती है । तरंग जो नया जीवन, नया उत्‍साह प्रदान करती है । इसके विपरीत अल्‍ट़्रासोनिक एक तरंग है (तेज आव्रति वाली) जो विनाश करती है । किन्‍तु जब हम शुभ संकल्‍प की स्थिति में होते हैं तब निर्माणकारी तरंगें ही पैदा होती है, विनाशकारी नहीं । हमारा संकल्‍प हमारा शत्रु है और हमारा मित्र भी । मैं अंघकार में हॅू, मेरा भविष्‍य खतरे में है , मैं असफल यात्री हॅू एैसा सोचने वाा बिना किसी वर्तमान संभावना के ऐसा बन जाता है । पिफर क्‍यों नहीं हम अच्‍छे संकल्‍प करें ।

चुंबक कभी चुंबक को प्रभावित नहीं कर सकता किंतु विचार प्रभावीकरण की प्रक्रिया इसके विपरीत है । बुरे विचार बुरे विचार तरंगों को अपनी और खींचते है और अच्‍छे विचार अच्‍छी विचार तरंगों को । जो संकल्‍प चेतन मन को छूकर रुक जाता है वह अपनी क्रियान्विति नहीं कर सकता । वह भाषा जगत तक जाकर रुक जाता है जबकि उसे भाव जगत तक जाना चाहिए था । संकल्‍प को भीतरी तल तक ले जाने के लिये चाहिए एकाग्रता, निर्विचारता । पवित्र मन वाले व्‍यक्ति का संकल्‍प कल्‍पव़क्ष की तरह फलदायी होता है और जिस वस्‍तु की हम दिल से मांग करते है, वह बंद दरवाजे को खोलकर हमारे घर में चली आती है ।

संकल्‍प क्‍यों करे

मनुष्‍य अनंत जन्‍मों से यह सोचता चला आ रहा है कि मुझे अमुक साधना से स्‍वयं को बदलना है, वास्‍तविक सुख को प्राप्‍त करना है, किंतु आज तक हुआ नहीं, क्‍योंकि संकल्‍प शिथिल हो गया, चेतना प्रवाहपाती हो गई । अब फिर से उस अवस्‍था में आना है इसलिये संकल्‍प करें --

1- शिक्षा, साधना, स्‍वभाव - परिवर्तन तथा अतीन्द्रिय क्षमताओं के कारण जागरण के लिये ।
2- मेरे भीतर वह सब है जो एक पूर्ण विकसित चेतना में होता है, इस विश्‍वास को साकार करने के लिये ।
3- स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए ।

'ओटोजेनिक चिकित्‍सा पद्वति का आज बहुत जोरों से प्रचार प्रसार हो रहा है । अनुप्रेक्षा इसी पद्वति का पर्याय वाचक है ।

राजा बहुत चिन्तित था, क्‍योंकि राजकुमार कुबड़ा हो गया । अब क्‍या किया जाये, किसी अनुभवी व्‍यक्ति ने बताया कि यदि राजकुमार एक साल तक एक सपाट सीधी लकड़ी के सामने खड़ा होकर यह भावना करे कि ठीक ऐसा ही सीधा सरल मेरा शरीर होता जा रहा है । उसने प्रयोग किया और प्रयोग सफल हुआ । राजकुमार स्‍वस्‍थ हो गया । इस संकल्‍पशक्ति के द्वारा असाध्‍य बीमारियों का इलाज किया जा सकता है ।

संकल्‍प की भाषा विधि

संकल्‍प शक्ति के विकास का साधन है -- व्रत यानी त्‍याग । त्‍याग की सम्‍पूर्ण साधनाप व्रत जागरण की साधना है , क्‍योंकि संकल्‍प की तरंग से असाक्ति की तरंग टूटती है । हम इस और प्रस्‍थान करें ---

1- मैं एैसा करके रहूंगा ।
2- एैसा होकर रहेगा ।
3- मुझे कोई रोक नहीं सकता ।
4- वाक्‍य लयबद्व मंद श्‍वास के साथ घीरे घीरे चले ।
5-संकल्‍प की भाषा बदले नहीं । जब तक चित्‍त पूरा एकाग्र नहीं हो जाए तब तक संकल्‍प दोहराते जायें ।
6- संकल्‍प विधायक जीवन निर्माणकारी होने चाहिये ।
7- अधूरे शिथिल मन से किये गये संकल्‍प कभी पूरे नहीं होते ।
8- निष्‍ ठा, प्रयोग और एकाग्रता जीनों जहां तक साथ मिलते है वहां कोई कार्य पूर्ण नहीं रहता ।
9- कुछ लोग संकल्‍प तो करते हैं मगर बार बार पुनरावर्तन नहीं करते । पुनरावर्तन से शक्ति पैदा होती है और नये चित का निर्माण होता है । समस्‍या के गर्भ से समाधान निकल आता है ।

यद्यपि मन की रचना सरल और जटिल दोनों ही प्रकार की होती है जिन्‍हें रुग्‍ण मनोरचना के कारण दु:ख भोगना पड़ रहा है, वे अवश्‍य मंगल संकल्‍प साधना से भारी फायदा उठा सकते है । अपेक्षा है मन को रोज शुद्ध करने की ।

1- मैं आज से सदा प्रसन्‍न मिजाज रहुंगा
2- मैं किसी भी परिस्थिति में स्‍वास्‍थ्‍य की उपेक्षा नहीं करुंगा
3- मैं साथ रहने वाले के साथ अनुकूल भाव रखूंगा
4- मैं उत्‍तेजना के अवसरों पर मौन रहूंगा
5- मैं आज की समस्‍या आज ही सुलझाऊंगा
6- मैं एकाग्रता के विकास हेतु रोज अश्रयास करुंगा
7- मैं शांत एवं पवित्र जीवन के प्रति जागरुक रहूंगा
8- मैं खान पान में शुद्वता रखूंगा
9- मैं एक साथ एक ही संकल्‍प करुंगा

गहरे कार्योत्‍सर्ग में प्रवेश करके 6 माह तक निरंतर एक संकल्‍प का अभ्‍यास करना चाहिए । चित्र जितना स्‍पष्‍ट होगा उतना ही परिणाम जल्‍दी आ सकेगा ।

संकल्‍प क्‍यों टूटते हैं

मनुष्‍य सब चीजों की सुरक्षा जानता है किंतु अपने संकल्‍पों को नहीं जानता । सुबह संकल्‍प करता है और शाम को तोडुता है क्‍योंकि हमारी चेतना कभी जोती है और कभी सोती है । जागत चेतना संकल्‍प करती है और मूर्च्छित चेतना तोड़ती है । मूर्च्‍छा का मुख्‍य कारण है - चंचता । यह बढ़ती है इन्द्रियों की लोलुपता से जिन्‍हें संकल्‍प को जीवित रखना है उनको तीन बातों का अभ्‍यास करना चाहिये ---

1- इन्द्रियों की लोलुपता को कम करें
2- प्रतिकूलता, कष्‍ट के समय संकल्‍प को न छोड़े
3- किये गये संकल्‍प का रोज पुरावर्तन करें । संभव है मन की चंचलता उसे तोड़ दे । एकाग्रता बढ़े ऐसे प्रयोग चालू रहने चाहिये

फलित की भाषा में कहा जा सकता है, इन्द्रियों और मन के अनुशासन द्वारा ही संकल्‍प शक्ति का विकास हो सकता है, शेष सारे प्रयोग सहयोग करने वाले हैं ।



अनिल हर्ष

Saturday, May 1, 2010

**मन की शांति के उपाय **

तीसरा उपाय

ईर्ष्‍या मत करो

हम सभी जानते है कि किस तरह ईर्ष्‍या  हमारे मन की शांति को भंग करती है । आप जानते है कि आपके ऑफिस में आपको दिया गया काम आपके दूसरे आफिस के साथियों से ज्‍यादा कठिन है आपके साथी का प्रमोशन हो जाता है और आपका नहीं होता आपने अपना व्‍यवसाय बरसों पहले चालू किया और आपके पड़ोसी ने साल भर पहले अपना व्‍यवसाय शुरु किया और उसका व्‍यवसाय चल निकला आपका नहीं

आपको अपने जीवन में ऐसे बहुत से उदाहरण मिल जायेंगे जिनसे कि आपके मन में ईर्ष्‍या उत्‍पन्‍न होती है ।

एक बात का ध्‍यान रखें हर एक मनुष्‍य का जीवन उसी तरह पलटता है जैसा कि उसके भाग्‍य में भगवान ने लिखा होता है दूसरे शब्‍दों में प्रत्‍येक मनुष्‍य को केवल वही हासिल होता है जो कि उसके भाग्‍य में हासिल होना लिखा होता है और जीवन की यही वास्‍तविकता है ।

अगर आपके भाग्‍य में धनवान होना लिखा है तो आपको धनवान बनने से कोई रोक नहीं सकता अगर ऐसा होना नहीं लिखा है तो कोई भी आपको धनवान नहीं बना सकता है ।

दूसरों पर इल्‍जाम लगाकर अथवा ईर्ष्‍या करके आप कुछ भी हासिल नहीं कर सकते और ना ही अपने भाग्‍य को बदल सकते हैं ।

 ईर्ष्‍या करके आप कुछ हासिल करने के बजाय केवल अपने मन की शांति को ही खो सकते है ।


अनिल हर्ष

Friday, April 9, 2010

**मन की शांति के उपाय **


दूसरा उपाय

माफ करना और भूल जाना

हम में से ज्‍यदातर लोग बहुधा अपने मन में गांठ बांध लेते हैं कि फला व्‍यक्ति ने मेरा उपहास किया तथा मुझे नुकसान पहुंचाया । और यह सोच सोच कर हम उसके प्रति अपने मन में दुर्भावना पाल लेते हैं और हम जितना सोचते हैं दुर्भावना उतनी ही ज्‍यादा बढुती जाती है । नतीजा यह होता है कि हमें अनिद्रा का रोग लग जाता है पेट में अल्‍सर बन जाता है और उच्‍च रक्‍त चाप से पीडि़त हो जाते हैं ।

आपका उपहास या नुकसान तो जिसने भी किया वो केवल एक बार किया मगर आप उसको बार बार याद करके उसके अहसास को हमेशा के लिये कई गुना बढ़ा लेते हैं और उसकी पीड़ा को असहनीय बना लेते हैं ।

अपनी इस आदत से छुटकारा पायें । जिन्‍दगी बहुत छोटी है इन छोटी मोटी बातों में अपना जीवन बर्बाद न करें । भूल जायें और माफ करें और आगे बढ़ जायें ।

माफ करने और भूल जाने से ही प्‍यार बढ़ेगा और जिन्‍दगी आबाद हो जायेगी ।

अनिल हर्ष

Thursday, April 8, 2010

**मन की शांति के उपाय **



पहला उपाय

हम में से ज्‍यादातर लोग बहुधा दूसरों के मामले में टांग अड़ाकर स्‍वयं के लिये समस्‍या खड़ी कर लेते हैं । ऐसा हम इसलिये करते हैं क्‍योंकि किसी प्रकार हम अपने आपको यह जता लेते हैं कि हम जिस तरीके से काम करते हैं वो ही तरीका सबसे अच्‍छा है और हम जिस सिद्धान्‍त / तर्क / नियमों से काम करते हैं वो ही सबसे ज्‍यादा फलीभूत तरीका है तथा जो व्‍यक्ति इन तरीकों / तर्कों एवं सिद्धान्‍तों के अनुसार नहीं चलते उनको सही मार्ग पर लाने के उनकी निंदा करनी चाहिये तथा उनको सही मार्ग बताना चाहिये --- हमारे द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्‍त / मार्ग

ऐसी सोच रखने से व्‍यक्ति परक की पहचान एवं स्‍वतन्‍त्रता समाप्‍त होती है जिसे कि भगवान ने बनाया है । भगवान ने हर एक व्‍यक्ति को अपने तरीके से एक अलग ही बनाया है । दो व्‍यक्तियों के व्‍यवहार कार्य और विचार किसी एक विषय पर एकदम एक जैसे नहीं हो सकते । प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपने अलग तरीके से काम करता है क्‍योंकि भगवान ने उनको जिस तरीके से कार्य करने की शक्ति दी है वो उसी तरीके से कार्य करते है ।

इसलिये हमेशा केवल अपने कार्य के बारे में सोचें और दूसरों के कार्य में बिना मांगे सलाह न दें ।

अनिल हर्ष

Sunday, April 4, 2010

'' दोस्‍तों के पैगाम दोस्‍तों के नाम ''



चाहे दोस्‍ती हो या मुहोब्‍बत सूरत से नहीं दिल से होती है

सूरत उनकी खुद ही अच्‍छी लगने लगती है

जिनकी कद्र दिल से हुआ करती है ।



जुदाई का दुख सह नहीं सकते

भरी महफिल में कुछ कह नहीं सकते

पूछो हमारे बहते आंसूओं से

वो भी कहेंगे हम आपके बिना रह नहीं सकते ।

Tuesday, March 30, 2010

'' दोस्‍तों के पैगाम दोस्‍तों के नाम ''


हर ऐक जज्‍बात को जुबां नहीं मिलती
हर एक आरजू को दुआ नहीं मिलती
मुस्‍कान बनाये रखो तो दुनिया साथ है आपके
ऑसूओं को तो ऑखों में भी पनाह नहीं मिलती ।


सपने थे सपनों के आप साहिल हुए
ना जाने कैसे हम आपके प्‍यार के काबिल हुए
कर्जदार है हम उस हसीन पल के
जब आप हमारी दुनिया में शामिल हुए ।



याद रखेंगें हम हर कहानी आपकी
लहरों के जैसी वो रवानी आपकी
आपने हमको जो दिल में अपने बसा रखा है
ये किस्‍मत थी हमारी या मेहरबानी आपकी ।

Saturday, March 27, 2010

'' दोस्‍तों के पैगाम दोस्‍तों के नाम ''



बिकता है गम हुस्‍न के बाजार में

लाखेां दर्द छिपे होते हैं एक छोटे से इन्‍कार में

जो हो जाओ अगर जमाने से दुखी

तो स्‍वागत है हमारे दोस्‍ती के दरबार में ।


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चॅाद को अकेले कभी ना पाओगे

आगोश में सितारे मिल ही जायेंगे

कभी अगर तन्‍हा हो तो

आंखें बंद कर लेना

अनजान चेहरों में भी हमें ही पाओगे ।

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दुनिया में खु शी उनको नहीं मिलती है

जो अपनी शर्तों पर जिन्‍दगी जीते है

बल्कि उहें खुशी उन्‍हें मिलती है

जो दूसरों के लिये जिन्‍दगी की

शर्तों को बदल देते हैं ।

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दायरे में रहना ही जिन्‍दगी है

गमों को सहना भी जिन्‍दगी है

यूं तो रहती है होठों पे मुस्‍कराहट

पर शायद चुपके चुपके रोना भी जिन्‍दगी है ।

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यकीन नहीं तुझे अगर खुद पे

तो जरा अजमा के देख ले

एक बार तूं जरा मुस्‍कराकर देख ले

जो ना सोचा होगा तुने ---- वो मिलेगा

बस इक बार अपना कदम बढ़ा कर देख ले ।

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अनिल हर्ष


Friday, March 26, 2010

'' दोस्‍तों के पैगाम दोस्‍तों के नाम ''




दिल के पास उनका घर बना लिया

ख्‍वाब में हमने उनको बसा लिया

मत पूछो कितना चाहते हैं हम उनको

बस यूं समझलो ---

उनकी हर खता को अपना मुक्कदर बना लिया ।


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अपनी दुनिया में यूं खो न जाना

दूर रहके हमको भूल न जाना

खबर हमारी ना ले सको तो कोई गम नहीं

पर अपनी खबर हमें देना भूल न जाना ।


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ये दिल प्‍यार के काबिल न रहा

कोई भी इजहार के काबिल न रहा

इस दिल में बस गयी तस्‍वीर आपकी

अब तो चांद भी दीदार के काबिल न रहा ।


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Sunday, March 21, 2010

THE INSTANCES USUALLY HAPPENS IN ONE'S LIFE

THE LAW OF INSTANCES


LAW OF QUEUE:
If you change queues, the one you have left will start to move faster than the one you are in now.

LAW OF TELEPHONE:
When you dial a wrong number, you never get an engaged one.

LAW OF MECHANICAL REPAIR :
After your hands become coated with grease, your nose will begin to itch.

LAW OF THE WORKSHOP:
Any tool, when dropped, will roll to the least accessible corner.

LAW OF THE ALIBI:
If you tell the boss you were late for work because you had a flat tire, the next morning you will have a flat tire.

BATH THEOREM:
When the body is immersed in water, the telephone rings.

LAW OF ENCOUNTERS:
The probability of meeting someone you know increases when you are with someone you don't want to be seen with.

LAW OF THE RESULT:
When you try to prove to someone that a machine won't work, it will!

LAW OF BIOMECHANICS:
The severity of the itch is inversely proportional to the reach.

THEATRE RULE:
People with the seats at the furthest from the aisle arrive last.

LAW OF COFFEE:
As soon as you sit down for a cup of hot coffee, your boss will ask you to do something which will last until the coffee is cold.


Anil Harsh


Saturday, March 13, 2010

तुकबन्‍दी - आज के जमाने की शेर शायरी

इधर खुदा है उधर खुदा है,

जिधर देखो उधर खुदा है

इधर उधर बस खुदा ही खुदा है

जिधर नहीं खुदा हे ------ उधर कल खुदेगा

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काली भयावह रात और चन्‍द्रमा अपनी पूरी जवानी पे,

अचानक मैंने कार रोकी तुमने पूछा क्‍यों,

मैं तुम्‍हारे बहुत करीब आया और तुम शर्म शार हो गयी,

मैंने मुस्‍कराकर तीन जादुई शब्‍द कहे

हाय ला पंचर !!!

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तुमसा कोई दूसरा जमीन पर हुआ

तो रब से शिकायत होगी

एक तो झेला नहीं जाता

दूसरा आ गया तो क्‍या हालात होगी

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दुरखत के पेमाने पे चिलमन ए हुस्‍न का फुरकत से शरमाना --

दुरखत के पेमाने पे चिलमन ए हुस्‍न का फुरकत से शरमाना --

ये लाईन अगर समझ में आ जाये तो मुझे जरुर बताना


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जिस वक्‍त खुदा ने तुमको बनाया होगा

एक सुरुर सा उसके दिल पे छाया होगा

पहले सोचा होगा कि तुझको जन्‍नत में रख लॅू

फिर उसको चिडियाघर का खयाल आया होगा

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मेरे मरने के बाद मेरे दोस्‍तों

यॅू ऑसूं न बहाना

अगर मेरी याद आये तो

सीधे मेरे पास चले आना

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ना वो इकरार करती है

ना वो इन्‍कार करती है

कमबख्‍त मेरे ही सपनों में अक्‍सर

मेरे दोस्‍त से प्‍यार करती है

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जब जब धिरे बादल तेरी याद आयी

झूम के बरसा सावन तेरी याद आयी

बारि श में भीगे लेकिन फिर भी तेरी याद आयी

क्‍यों न आये तेरी याद --- तूने जो छतरी अब तक नहीं लौटायी

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दुकानदार बोला -- तुम्‍हें क्‍या चाहिये

जो भी कहोगे मेरी दुकान पर वो मिलेगा

उसने कहा - कुत्‍ते के खाने के बिस्‍कुट है क्‍या

दुकानदार बोला - यहीं पर खाओगे या लेके जाओगे

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उनकी गली के चक्‍कर काट काट कर

कुत्‍ते भी हमारी पहचान के हो गये

वो तो हमारे न हो सके

म कुत्‍तों के सरदार हो गये

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हसीन तुम हो तो बुरे हम भी नहीं

महलों में तुम हो तो सड़क पर हम भी नहीं

प्‍यार करके कहते हो कि शादी शादी शुदा हो

तो कान खोलकर सुन लो कुंवारे हम भी नहीं
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मच्‍छर ने जो काटा --- दिल में मेरे जुनून था

खुजली हुई इतनी --- दिल बे सुकून था

पकड़ा तो छोड़ दिया ये सेाच कर -----

उसकी रगों में अपना ही खून था ।

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अनिल हर्ष

Managed / acquired Knowledge of English Language by surroundings


English is internationally recognized communicating language which is spoken all around the world we can not ignore and deny it. But it dose not mean that all the person employed in our organisation are well conversant of English language. Some of them have manage to learn English from his surroundings to some extent to save his employment in the organisation. I give here  some examples of these people and how they manage their affairs:



1) An employee applied for leave as follows:

"Since I have to go to my village to sell my land along with my wife, please sanction me one-week leave."




2) From an employee who was performing the first haircut ceremony of his 10 year old son:


"as I want to shave my son's head, please leave me for two days"



3) Leave-letter from an employee who was performing his daughter's wedding:




"as I am marrying my daughter, please grant a week's leave.."

4) From an employee whose mother in law expired

"As my mother-in-law has expired and I am only one responsible for it, please grant me 10 days leave."

5) Another employee applied for half day leave as follows:

"Since I've to go to the cremation ground at 10 o-clock and I may not return, please grant me half day casual leave"

6) An incident of a leave letter

"I am suffering from fever, please declare one day holiday."


7) A leave letter to the headmaster:

"As I am studying in this school I am suffering from headache. I request you to leave me today"

8) Another leave letter written to the headmaster:

"As my headache is paining, please grant me leave for the day."


9) Covering note:

 "I am enclosed herewith..."

10) Another one:

"Dear Sir: with reference to the above, please refer to my below..."

11) Actual letter written for application of leave:
 

"My wife is suffering from sickness and as I am her only husband at home I may be granted leave".

12) Letter writing: -

"I am in well here and hope you are also in the same well."

13) A candidate's job application:

"This has reference to your advertisement calling for a ' Typist and an Accountant - Male or Female'...As I am both(!! )for the past several years and I can handle both with good experience, I am applying for the post.



Anil Kumar Harsh