Sunday, April 4, 2010

'' दोस्‍तों के पैगाम दोस्‍तों के नाम ''



चाहे दोस्‍ती हो या मुहोब्‍बत सूरत से नहीं दिल से होती है

सूरत उनकी खुद ही अच्‍छी लगने लगती है

जिनकी कद्र दिल से हुआ करती है ।



जुदाई का दुख सह नहीं सकते

भरी महफिल में कुछ कह नहीं सकते

पूछो हमारे बहते आंसूओं से

वो भी कहेंगे हम आपके बिना रह नहीं सकते ।

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